Light Pollution: कहीं ये लाइट की चकाचौंध, हमें प्रकृति के रास्ते से तो नहीं भटका रही
Light Pollution: Somewhere this glare of light is not deviating us from the path of nature

Light Pollution: आज से 100 साल से भी कम समय पहले, हर कोई शख्स ऊपर आसमान की तरफ देखकर एक शानदार तारों वाली रात देख सकते थे। अब, बदलते वक्त में दुनिया भर में लाखों बच्चे कभी भी आकाशगंगा का अनुभव नहीं कर सकेंगे, जहां वे रहते हैं। रात में आर्टिफिशियल लाइट (Artificial Light) का बढ़ता और व्यापक इस्तेमाल न केवल ब्रह्मांड के बारे में हमारे दृष्टिकोण को खराब कर रहा है बल्कि यह हमारे पर्यावरण, हमारी सुरक्षा, हमारी ऊर्जा खपत और हमारे स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
अब सवाल है कि हमारी आगे की पीढ़ी यानी आजकल के बच्चे मिल्की वे को नहीं पहचान पाते। इसका एक ही जवाब है रात में पूरी दुनिया में चमकते असंख्य बल्ब, ट्यूब, सीफीएल। ये इंसानी लाइटें हैं जिसने प्राकृतिक लाइट को टिमटिम बना दिया है। हम तारे देखना भी चाहते हैं लेकिन विवश हैं क्योंकि आंखों को आदत बनावटी रोशनी देखने की आदत हो गई है।

आखिर क्या है Light Pollution
आप सभी बचपन से पानी, हवा और जल प्रदूषण के बारे में पढ़ते आ रहे हैं। आज हम आपको रोशनी से होने वाले प्रदूषण के बारे में बताएंगे। पहले तो यह जानिए कि आखिर लाइट प्रदूषण होता क्या है? साधारण शब्दों में कहें तो बनावटी या मानव निर्मित रोशनी का हद से ज्यादा इस्तेमाल ही लाइट पॉल्यूशन है। इस प्रदूषण ने इंसानी जिंदगी के साथ ही जानवरों और अति सूक्ष्म जीवों की जिंदगी को भी खतरे में डाल दिया है।
समाचारों में बढ़ते शहरीकरण और नई स्ट्रीट लाइटों की स्थापना, सुरक्षा के लिए लाइटों की संख्या बढ़ने और बाहरी सजावट के लिए लाइट लगाने से आकाश की चमक फीकी हो गयी है। हम कह सकते हैं प्राकृतिक आसमान को चमक को धूमिल करने में प्रकाश प्रदूषण का अहम योगदान है।

लाइट पॉल्यूशन के 4 अलग-अलग प्रकार बताए गए हैं-
ग्लेयर– रोशनी की अत्यधिक चमक जिससे आंखें चौंधिया जाएं, थोड़ी सी लाइट मद्धम होने पर अंधेरे सा दिखने लगे।
स्काईग्लो– घनी बसावट वाले इलाकों में रात के अंधेरे में भी आसमान का चमकना
लाइट ट्रेसपास– उन जगहों पर भी लाइट का पड़ना जहां उसकी जररूत नहीं
क्लटर– किसी एक स्थान पर एक साथ कई चमकदार लाइटों का लगाना
ऊपर बताए ये 4 कंपोनेंट लाइट पॉल्यूशन (Light Pollution) की श्रेणी में आते हैं। तकनीकी भाषा में कहें तो लाइट पॉल्यूशन औद्योगिक सभ्यता का साइड इफेक्ट है। इस साइड इफेक्ट के सोर्स की बात करें तो इनमें एक्सटीरियर और इंटीरियर लाइटिंग, एडवर्टाइजिंग, कॉमर्शियल प्रॉपर्टिज, ऑफिस, फैक्ट्री, स्ट्रीटलाइट और रातभर जगमगाते स्पोर्ट्स स्टेडियम शामिल हैं। ये लाइटें इतनी चमकदार होती हैं कि इंसानों से लेकर जानवरों तक की जिंदगी को मुश्किल बनाती हैं। ऐसी लाइटें ज्यादातर स्थिति में बिना काम की होती हैं। अगर इतनी चमकदार लाइटें न भी लगाई जाएं तो कम चल सकता है। ऐसी लाइटें भारी संसाधन के खर्च के बाद आसमान में विलीन होती रहती हैं। अगर तकनीक का इस्तेमाल कर सिर्फ उतने ही स्थान पर लाइट रोशन की जाए जितने स्थान पर रोशनी की जरूरत है तो यह प्रदूषण बहुत हद तक कम हो सकता है।

लाइट पॉल्युशन का हमारी सेहत पर क्या असर हो रहा है इसके बारे नें 2016 में जारी वर्ल्ड एटलस ऑफ आर्टिफिशियल नाइट स्काई ब्राइटनेस नाम की एक स्टडी बताती है कि दुनिया की 80 परसेंट शहरी आबादी स्काईग्लो पॉल्यूशन (Skyglow Pollution) के प्रभाव में है। यह प्रभाव ऐसा होता है कि लोग कुदरती रोशनी और बनावटी रोशनी में फर्क महसूस नहीं कर पाते। अमेरिका और यूरोप के 99 परसेंट लोग नेचुरल लाइट (Natural Light) और आर्टिफिशियर लाइट (Artificial Light) में फर्क नहीं कर पाते। उन्हें पता नहीं होता कि बल्ब की रोशनी और सूर्य की रोशनी में कैसा अंतर होता है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लोगों 24 घंटे बनावटी रोशनी में रहते हैं। वे अंधेरे में कभी रहे नहीं। रोशनी भी मिली तो बल्ब और ट्यूब की। ऐसे में कुदरती रोशनी पहचानने में दिक्कत पेश आती है।
इंसान के सेहत खराब होने के साथ ही ये प्रदूषण के स्तर में भी बढ़ोतरी कर रही है। आप इस प्रदूषण के बारे में विस्तार से जानना चाहते हैं तो गूगल अर्थ पर ‘ग्लोब एट नाइट इंटरेक्टिव लाइट पॉल्यूशन मैप’ का डाटा देख सकते हैं। इस धरती का अस्तित्व 3 अरब साल का बताया जाता है जिसमें रोशनी और अंधेरे का एक तालमेल है। ये दोनों मिलकर ही धरती को संभालते रहे हैं। इसमें सूर्य, चंद्रमा और तारों की रोशनी शामिल है। अब बनावटी लाइट ने रात और अंधेरे का कॉनसेप्ट खत्म कर दिया है। इससे कुदरती रात और दिन का पैटर्न पूरी तरह से तहस-नहस हो गया है। इससे पर्यावरण का पूरा हिसाब गड़बड़ा गया है। अत्यधिक रोशनी के चलते रात को नींद नहीं आती या देर से आती है। सुबह घरों में कुदरती रोशनी का प्रवेश नहीं होने से समय से नींद नहीं खुलती। इसका बड़ा असर हमारी सेहत पर देखा जा रहा है।
हाल के अध्ययन से ये बात साफ हो गयी है की जो कीड़े आसमान की रोशनी से देखते है या अपने रास्तों के पता लगाते हैं। वे भी अब चमकदार रोशनी का शिकार हो गए हैं। इन्हीं की तरह अन्य प्रजातियां भी इसका नुकसान उठा रही हैं
इतना ही नहीं चीटियां अपने घर लौटने के लिए इसे कंपास की तरह इस्तेमाल करती हैं। प्रवासी पक्षी भी इस चमकदार रोशनी का शिकार होकर अपना रास्ता भटक जाते हैं, हालांकि उनके पास एक चुंबकीय कंपास होता है, लेकिन वो भी ऐसे वक्त काम नहीं आता।
सबसे खराब स्थिति में वह जानवर हैं, जिन्हें अपना घर या प्रजनन स्थल खोजने के लिए तारों की जरूरत होती है, वे इसे कभी नहीं बना सकते हैं।
बिना तारों का आकाश उन्हें रास्ते से भटकाने का कारण बनता जा रहा है, जो उनकी ऊर्जा बर्बाद कर रहा है। इससे हमारी प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।Read More..
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