#kukrukoo साहित्य : तेरी आज़ादी
रात को मां ने खाना खाने के लिए आवाज लगाई, तो रघुवेंद्र ने फिर से मना कर दिया। “क्या हो गया है तुझे? भूख नहीं लगी क्या?” मां ने पूछा। “नहीं मां, तू खा ले। मुझे भूख नहीं है। लगता है शायद दिन में ज्यादा ही खा लिया। तू रख दे रोटी बनाकर। भूख लगेगी तो मैं खा लूंगा।” रघुवेंद्र ने मां को दिलासा देते हुए कहा।”ठीक है, जैसी तेरी मर्जी। याद से खा लेना भूख लगेगी तो।” मां ने अपने कमरे में जाते हुए कहा।
“हां, मां।” रघुवेंद्र टीवी के चैनल बदलते हुए बोल रहा था। मां के कमरे में जाते ही रघुवेंद्र सीधा बालकनी की ओर भागा। वो सामने वाली बिल्डिंग में कुछ देखने की कोशिश कर रहा था। उसके मुख पर परेशानी की लकीरें थीं, जैसे किसी को ढूंढ रहा हो। “वो रहा।” किसी को देखते हुए रघुवेंद्र बोला। उसके दिल को जैसे सुकून मिल गया हो। उसने कुर्सी ली और वहीं बैठ गया। थोड़ी देर बाद अचानक रघुवेंद्र अपनी कुर्सी से खड़ा हो गया। “अबे क्या कर रहा है? पागल हो गया है क्या?” रघुवेंद्र की जुबां तो शांत थी, लेकिन उसकी अंतरआत्मा जैसे चीख रही हो।”रुक साले, अबे रुक जा।”
रघुवेंद्र का मन जोर-जोर से चिल्लाने का कर रहा था, लेकिन वो मां को जगाकर परेशान नहीं करना चाहता था। इसीलिए, चुप ही रहा। कुछ देर बाद सामने वाली बिल्डिंग में फिर शांति हो गई और जिस खिड़की की ओर रघुवेंद्र देख रहा था। उसमें अब सब शांत था, लेकिन उस खिड़की पर रखे दो हाथों में गिरे आंसुओं को रघुवेंद्र जैसे अपने हाथों पर महसूस कर सकता हो। उसका दिल भी वैसे ही हो रहा था। “क्या करूं तेरा? कैसे रोकूं सब कुछ।” रघुवेंद्र ने कहा।कुछ देर की शांति के बाद रघुवेंद्र अपने घर के किचन में घुसता है और मां की बनाई रोटियों में से चार रोटियां निकालता है।
इसके बाद रघुवेंद्र उनमें से दो रोटियों में थोड़ी सब्जी और अचार रखकर एक पेपर में रखता है और बाकी की दो रोटियां अपने हाथ में लेकर चल देता है। उसने धीरे से अपने घर का दरवाजा खोला, ताकि मां आवाज से न उठ जाए। घर से बाहर निकलकर रघुवेंद्र सीधे उसी बिल्डिंग के नीचे खड़ा हो गया। वो अब साफ-साफ उन आंखों को देख सकता था। आंसूओं से लाल हुई उन आंखों को देखकर रघुवेंद्र का गला भर आया। उसने एक रोटी बिल्डिंग के नीचे बैठे दो कुत्तों के सामने रखी और फिर उन्हीं दो आंखों की ओर अपने टॉर्च की लाइट चमकाने लगा। उस लाइट को देखकर आंसुओं से भरी दो आंखें झिलमिलाने लगी।
कुछ सेकेंड बाद टॉर्च की लाइट बंद हो गई और उन आंखों में रघुवेंद्र को देखकर जैसे चमक आ गई हो। उसने अपनी उंगली से रघुवेंद्र को रुकने का इशारा किया।थोड़ी देर बाद एक रस्सी से बंधी टोकरी रघुवेंद्र के पास आई। उस टोकरी में रघुवेंद्र ने उस कागज को रखा, जिसमें वो रोटियां लेकर आया था। फिर उस चेहरे ने मुस्कुरा कर रघुवेंद्र को बॉय कहा और रघुवेंद्र अपने घर लौट आया। वो फिर बालकनी में आकर अपने हिस्से की रोटी लिए बैठ गया था।
जैसे-जैसे सामने की बिल्डिंग में बैठी परछाई एक निवाला लेती, रघुवेंद्र भी एक निवाला अपने मुंह में डालता। कुछ समय बाद सामने वाले हाथ में रखा निवाला वहीं रुक गया और अचानक एक मोमबत्ती जलती हुई रघुवेंद्र को नजर आई।उस रोशनी को देखकर रघुवेंद्र मानो बहुत खुश हो गया हो। वो तुरंत उठा और उसने अपने टॉर्च से फिर दो बार लाइट जलाकर इशारा किया। उन दो आंखों की खुशी देखकर रघुवेंद्र बहुत खुश हुआ। अगले दिन रघुवेंद्र सुबह पांच बजे उसी बिल्डिंग के नीचे खड़ा होकर इंतजार करने लगा। थोड़ी देर बाद उसी खिड़की से फिर एक टोकरी नीचे रघुवेंद्र के पास आई।
रघुवेंद्र ने उसमें से रखी मैली फटी शर्टे को निकाला। वो थोड़ी सेकेंड के लिए मानो कुछ सोचने लगा हो। फिर सामने लटकी टोकरी के हल्के से हिलने पर वह अपने विचारों से बाहर आया और उसने एक छोटा कैमरा उसने शर्ट के बटन पर लगा कर वापस उसे उसी टोकरी में रखा दिया। इसके बाद रघुवेंद्र अपने घर चला गया और रात का इंतजार करने लगा। रात को वो अपनी बालकनी में बैठकर इंतजार कर रहा था कि तभी फिर से मार-पीट की आवाजें उस खिड़की से सुनाई देने लगीं। रघुवेंद्र के हाथ बैलकनी की रेलिंग को मसल रहे थे।
वो बहुत कुछ करना चाहता था पर कर नहीं पा रहा था। “बस आज की ये काली रात और झेल ले, रघु। कल की सुबह तेरी आजादी की होगी।” रघुवेंद्र अपने मुंह में बुदबुदाया। खिड़की की लाइट बंद हो गई और रघुवेंद्र फिर रोटियां लेकर चल दिया। उसने फिर वहीं किया, जो पिछली रात को किया था। हालांकि, आज उसका मन दुखी था, लेकिन कहीं न कहीं शांत था।अगले दिन सामने वाली बिल्डिंग से पुलिस के दो अधिकारी एक औरत और आदमी को हथकड़ियां बांधकर ले जा रहे थे। रघुवेंद्र भी उसी बिल्डिंग के बाहर खड़ा था। उसके हाथों ने एक 8 साल के बच्चे की उंगली थाम रखी थी।
एक पुलिस अधिकारी ने रघुवेंद्र के पास आकर कहा, “लैफ्टिनेंट रघुवेंद्र प्रताप, गुड जॉब। चाइल्ड प्रोटेक्टशन सर्विस वाले थोड़ी देर में आते ही होंगे। उनके साथ आप बात कर लेना। मेरा एक अधिकारी आपके साथ रहेगा। अब हम चलते हैं। बच्चे की शिकायत हमने दर्ज कर ली है और हमारे पास सबूत के तौर पर वीडियो भी है। इन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की कोशिश करेंगे।”अधिकारी की बात सुनकर रघुवेंद्र ने अपने हाथों में बच्चे के हाथों को कसके थामते हुए कहा, “बहुत, बहुत शुक्रिया साथ देने के लिए।
जब तक चाइल्ड प्रोटेक्शन सर्विस वाले नहीं आते। ये मेरे साथ रहेगा।” रघुवेंद्र की बात सुनकर हामी भरते हुए पुलिस अधिकारी उन दो लोगों को जीप में भरकर वहां से चला गया।”चल, तेरे लिए गाजर का हलवा बनवाया है। खाएगा।” रघुवेंद्र ने पूछा, तो 8 साल के रघु की आंखें खुशी से चमक गईं। वो रघुवेंद्र के घर आ गया। उसे देखकर रघुवेंद्र की मां ने कहा, “तो इसीलिए, तुझे इतने दिनों से रात को भूख नहीं लग रही थी। 10 दिन पहले ही छुट्टी आया है और आते ही शुरू हो गया।” मां गाजर का हलवा लाते हुए बोली। रघुवेंद्र उस बच्चे के सिर को सहलाते हुए बोला। “रघु, आजाद होकर कैसा लग रहा है?”रघुवेंद्र के पूछने पर रघु बोला, “आपने जब रोटी के कागज में लिखकर दिया था कि आप मुझे आजाद करवाएंगे और साथ में मोमबत्ती और माचिस दी थी, ताकि मैं आपको उसे जलाकर बता सकूं कि मुझे आजादी चाहिए, मैं तो तभी खुश हो गया था।
इसीलिए, अगली रात को जब मामा-मामी ने मुझे मारा, तो मुझे दर्द नहीं हुआ। मुझे पता था कि मैं अब बहुत जल्द आजाद होने वाला हूं।” रघु इतना कहकर मुस्कुराते हुए गाजर का हलवा खाने लगा। उसे देखकर रघुवेंद्र भी मुस्कुरा दिया और उसने अपनी मां की ओर बढ़ते हुए कहा, “20 साल पहले आपने भी ऐसे ही एक रघु को आजाद करवाया था और उसी दिन मैंने ठान लिया था कि मैं सेना में भर्ती होकर अपनी देश की आजादी का रखवाला तो बनूंगा ही, लेकिन जिस दिन मुझे देश का कोई भी इंसान किसी भी मुश्किल में फंसा हुआ नजर आएगा। मैं उसे भी आजाद करवाने की पूरी कोशिश करूंगा।”रघुवेंद्र की बात सुनकर मां की आंखों में आंसू आ गए। अपनी मां के आंसू पोंछते हुए रघुवेंद्र ने कहा, “एक फौजी का कर्तव्य केवल देश की ही नहीं देशवासियों की रक्षा करना भी होता है।”
रघुवेंद्र की बातें सुनकर मां ने उसके सिर पर प्यार भरा हाथ फेरा और फिर उन्होंने उस बच्चे की ओर देखते हुए कहा, “तो बता क्या बनेगा बड़ा होकर?”उस बच्चे ने पहले रघुवेंद्र को देखा और फिर सामने की दीवार पर लटकी सैन्य वर्दी में रघुवेंद्र की फोटो को निहारा। कुछ सेकेंड बाद वह सीना तानकर खड़ा हुआ और रघुवेंद्र की ओर सल्यूट मारते हुए बोला, “लैफ्टिनेंट रघुवेंद्र प्रताप।” बच्चे की बात सुनकर रघुवेंद्र ने भी सल्यूट मारा। ये देखकर मां की आंखें फिर भर आईं।