kukrukoo
A popular national news portal

जलवायु परिवर्तन हमारे स्वास्थ्य को भी बिगाड़ रहा, जानिए कैसे

दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की लगातार हो रही घटनाओं ने स्वास्थ्य और सुरक्षा के समक्ष एक नई चुनौती पेश की है।
दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की लगातार हो रही घटनाओं ने स्वास्थ्य और सुरक्षा के समक्ष एक नई चुनौती पेश की है।

विनोद कुमार

नई दिल्ली। दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की लगातार हो रही घटनाओं ने स्वास्थ्य और सुरक्षा के समक्ष एक नई चुनौती पेश की है।

कई शोध में जलवायु परिवर्तन के कारण बड़े स्तर पर आर्थिक और पारिस्थितिकीय नुकसान का जिक्र होता रहता है. जलवायु परिवर्तन में, खासकर बढ़ते तापमान का खतरा भारत पर अधिक है. जलवायु संकट से यह स्थिति असहनीय बन सकती है. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली कुल मौतों में 12 फीसदी से अधिक गर्मी के कारण होती है. जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर गंभीरता का असर, भारत के विकास के रूप में भी दिखेगा. ऐसे में जरुरी है कि विकास की सभी योजनाओं में जलवायु के प्रति सकारात्मक सोच को अभिन्न अंग के तौर पर शामिल किया जाये.

दक्षिण एशिया, मध्य अमेरिका, करिबियाई और प्रशांत क्षेत्र के विकासशील छोटे द्वीपो के सामने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों का खतरा अधिक मंडरा रहा है.हालांकि, जलवायु परिवर्तन के खिलाफ साझा प्रयास, वित्त, महत्वकांक्षा, समर्थन की पारदर्शिता जैसे मसलों पर विकसित देशों का रुख सहयोगात्मक नहीं रहा है.
वायुमंडल में अधिक कार्बन उत्सर्जन के लिये जिम्मेदार होने के बावजूद ये देश अपने दायित्व को अस्वीकार करते हैं, कुछ तो मानवजनित जलवायु परिवर्तन से भी इंकार करते हैं. बात यह है कि हम गैर बराबरी और अन्यायपूर्ण दुनिया में रहते हैं.

जलवायु परिवर्तन युवाओं के स्वास्थ्य और सामाजिक आर्थिक स्थायित्व के लिए बड़ा खतरा है, खासकर विकासशील देशों में, जहाँ युवाओं कि बड़ी आबादी रहती है. जलवायु परिवर्तन अफ्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका में खाद्य सुरक्षा के सभी पहलू को प्रभावित करेगा.
उपभोक्ता व्यवहार और जलवायु परिवर्तन के प्रति दृष्टिकोण को मापने वाले एक सर्वे में मात्र 48 फीसदी भारतीय जलवायु परिवर्तन को गंभीर पर्यावरणीय समस्या मानते हैं.

वनों की कटाई, जैव विविधता को नुकसान और हानिकारक रसायन के इस्तेमाल को लोग मुख्य समस्या के तौर पर देखते हैं. हालांकि, दुनिया के अनेक भागों में लोग इसके प्रति जागरूक हो रहे हैं. नागरिक समाज समूहों, गैर सरकारी संस्थाओं, अकादमिक स्तर पर विचारों और क्रियान्वयन के प्रति सक्रिय बहस हो रही है.

लेकिन वैकल्पिक विचारों को नीतिगत प्रक्रियाओं के साथ कैसे जोड़ा जाये, यह अभी स्पष्ट नहीं है.मौजूदा दौर में इसकी प्रासंगिकता बढ़ी है.

दशकों से पारिस्थितिकी तंत्र, वन, जल निकाय और जैव विविधता को नुकसान पहुंचाया गया है. इस वैश्विक समस्या के स्थानीय तौर पर समाधान की दिशा में हमें काम करने की आवश्यकता है.

#kukrukoo

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

You might also like