Tajmahal a Hindu Temple : मोहब्ब्त की निशानी ताजमहल भले ही दुनिया के 7 अजूबों में शुमार हो लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की वो एक दौर था जब भारत में आक्रमणकारी मुगलों ने भारतीय संस्कृति को सबसे ज्यादा क्षति पहुचाई थी । बीते 9 मई की तारीख ताजमहल(Tajmahal a Hindu Temple ) के लिए बहुत खास थी क्योंकि इसी दिन ताजमहल बनकर तैयार हुआ था। मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पसंदीदा बेगम मुमताज के लिए की याद में ताज महल बनवाया था लेकिन इसके पीछे कितने हिन्दू मंदिरों की बलि दी गई थी इतिहास लिखने वाले क्यों भूल गए। पहले थोड़ा ताजमहल के इतिहास को समझ लेते है फिर आगे की कड़ी को जोड़ना ठीक रहेगा। इब्राहिम लोधी ने दिल्ली की जगह आगरा को अपनी राजधानी बनाया ।
1504 ईसवी में आगरा शहर बसाया । इसे बनाने के लिए बगदाद से कारीगर को बुलाया गया था जो पत्थरो को घुमावदार अक्षरों में तराश सकता है। ऐसे कारीगर थे जो संगमरमर के पत्थरों में फूल की आकृति उकेरने में निपुण थे। साथ है तुर्की के इंस्ताबुल से भी कई कारीगर आए थे। कई देशों से लाए गए पत्थरो को तराशकर ताजमहल को बनाया गया। 1603 मे शुरू हुआ निर्माण 22 वर्षो तक चला । इसमें कोई शक नहीं है कि ताजमहल को मुमताज की याद में बनाया गया था लेकिन इतिहास और इतिहासकार मानते है ताजमहल के नीचे और कुछ बन्द दरवाजों के अंदर हिन्दू धर्म के भगवान की मूर्तियों को कैद कर रखा है और उन्हें नष्ट किया गया है ।
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आजादी के बाद भारत की कमान किसके हाथों में थी और शिक्षा मंत्री कौन था जिसने मुगलों की ब्याख्या कर डाली । यह भारत के इतिहास के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है । देश के साथ सच क्यों छिपाया गया । आज की सरकारें यही आरोप लगाती है । राजनीतिक पार्टियों को अगर वोट की चाह होती है तो वह किसी भी परिस्थिति में समझौता कर लेते है ।
ताजमहल बनने के 281 वर्ष बाद खुले थे बन्द 22 कमरे
इतिहास जब खुद को अपने आइने में देखता है तो कई सत्य उसके सामने आने लगते है। ताजमहल में अभी भी वो 22 कमरे है जो हमेशा बन्द ही रहे है उनके खुलने का सौभाग्य 88 साल पहले मिला । मतलब ताजमहल के निर्माण पूरा होने के 281 साल बाद । ये इसलिए खोले थे क्योंकि ए एस आई को यह अनुमान था कि बन्द कमरों के पीछे हिन्दू धर्म की मान्यताओं को छिपाया गया है। इसका पूरा आकलन किया गया था। लेकिन कमरों को किसी तरह का नुकसान नहीं हुआ। उसके बाद से अब यह स्थित बनती दिख रही है कि एक बार फिर इन्हीं 22 बन्द कमरों को खोलने के लिए मामला कोर्ट जा पहुंचा है। आपको बता दें कि अयोध्या के भाजपा नेता रजनीश सिंह द्वारा लखनऊ हाई कोर्ट में इन बन्द कमरों को खोलने के सम्बन्ध में दायर याचिका से विवाद छिड़ गया। वर्ष 1653 में मुगल सम्राट शाहजहां के सपनों को स्मारक के दिन अब लदने लगे है। यह तो पता है की मुख्य गुम्बद के नीचे ही शाहजहां और उनकी बेगम मुमताज की असली कब्र है ये भी साल 1994 से बन्द है।
ऐसे बन्द करने के पूछे तर्क यह दिया की की सैलानियों द्वारा इसे बार बार छूने से इसकी चमक में फर्क पड़ रहा है। लेकिन हर साल शाहजहां के उर्स में इन्हे सिर्फ तीन दिनों के लिए खोला जाता है उर्स कमेटी द्वारा यहां चादरपोशी के कार्यक्रम के साथ फातिहा भी पढ़ा जाता है मुख्य गुम्बद के नीचे की ओर प्लेटफार्म को चमेली फर्श कहा जाता है जहां 22 कमरे मौजूद है इतिहासकार मानते है कि यहां एक शिवमन्दिर या राजपूताना महल था जिसे शाहजहां ने कब्जा कर मकबरे में तब्दील किया। यह भी मानना है कि कुछ हिन्दू आंकरन के चिन्ह हटा दिए गए । लेकिन जहां नहीं हटा पाए वहां चिन्ह बने हुए है। इतिहासकारों ने यह भी माना कि ताजमहल शिव मन्दिर को इंगित करने वाले शब्द तेजोमहालय शब्द का अपभ्रंश है तेजोमहालय मंदिर(Tajmahal a Hindu Temple) में अग्रेश्वर महादेव प्रतिष्ठित थे। यहां तक गौशाला भी थी।
सरकार पर ताजमहल पर रुख और कमाई का जरिया है ताज
सबसे पहले साल 2015 में सात याचिकाकर्ताओं ने आगरा की अदालत में एक याचिका दायर की थी । जिसमे कहा गया की हिन्दू श्रद्धालुओं को ताज महल में पूजा करने की इजाजत दी जाए । तब केंद्रीय सांस्कृतिक मंत्रालय ने लोकसभा में कहा था कि ऐसा कोई सबूत नहीं है । जिससे यह साबित हो सके की वहां मंदिर था। ताज महल में जिस वीडियोग्राफी करने के किए घमासान मचा है इससे पहले 2017 में वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी कराने की मांग को खारिज कर दिया था।
साल 2000 में पीएन ओके ने कहा था कि ताजमहल एक हिन्दू राजा ने बनवाया था। 2018 में राष्ट्रीय बजरंग दल की महिला विंग की मीना दिवाकर ताजमहल परिसर में मस्जिद में आरती करने में कामयाब रही। अभी भी ताजमहल को लेकर जो विवाद चल रहा है उसे देखते हुए लगता है कि आगे बहुत कुछ होना बाकी है वैसे सरकार के लिए भी ताजमहल कमाई के मामले में सरताज है । साल 1966 में जब पहली बार पर्यटकों ने इसका दीदार किया तो टिकट के लिए महज 20 पैसे चुकाने पड़ते थे। आज ताज के दीदार के लिए 250 रूपये देने पड़ते है सरकार को इससे काफी आमदनी होती है । करोना से पहले इसकी कमाई 96 करोड़ हुई थी । इससे पहले यह वर्ष दर वर्ष बढ़ती गई ।
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