How a king overturned Jinnah’s move : रजवाड़ों का शहर राजस्थान जहां राजा , महाराजा किलो और और सूरवीरों की धरती के नाम से विख्यात है देश की राजधानी दिल्ली से 423 किलोमीटर दूर राजस्थान जिसकी उम्र 73 साल हो गई । इस राजस्थान ने ना जाने कितने वीर सपूतों को जन्म दिया है और उन्होंने देश को बचाने के लिए अपनी जान की आहुति दे दी । 30 मार्च 1949 को अपने अस्तित्व में आया राजस्थान जो आप देख रहे है यह आजादी के पहले आधा भारत का होता और आधा पाकिस्तान का । लेकिन एक राजा की सूझबूझ से पूरा राजस्थान भारत की झोली में आ गया। और उसने पाकिस्तान के कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना की नापाक चलत को मटियामेट कर दिया। क्षेत्रफल के हिसाब से देश का यह सबसे बड़ा राज्य है।
राजपुताना से राजस्थान का सफ़र बेहद दिलचस्प है । वैसे तो भारत में कुल 565 रियासतें थी इन सभी को एकत्र करने के बाद एक भारत बना। इन्हीं 565 रियासतों में राजस्थान में 22 रियासत थी। अंग्रेजो के ज़माने में इसी राजस्थान को राजपूताना नाम से जाना जाता था । सभी 22 रियासतें राजाओं के अधीन थी । देश का विभाजन हुआ । पाकिस्तान अलग देश बना फिर राजस्थान की 22 रियासतों ने सात चरणों में मिलाकर एक राज्य बनाया जिसे राजस्थान नाम मिला । शायद आपको पता न हो लेकिन देश की आजादी के समय भारत के सभी रियासतों को एकत्र करने की जिम्मेदारी देश के गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल और उनके सचिव वीके मेनन के पास थी। जिसमे सरदार पटेल का बहुत बड़ा योगदान था उन्होंने अपनी सूझबूझ से देश की सभी 565 रियासतों को मनाया । सबको एक किया तब जाकर यह भारत बना । अगर सभी रियासतें एक नहीं होती तो हैदराबाद एक अलग देश होता , राजस्थान अलग देश , दिल्ली अलग , जूनागढ़ अलग देश । इस प्रकार आपको हर देश जाने के लिए वीजा लेना पड़ता ।
मुगलों से लेकर अंग्रेजो तक राजस्थान बनने की कहानी दिलचस्प है
भारत पहले 500 से अधिक सालों तक मुगलों की गिरफ्त में था। इसके बाद करीब 200 सालों तक अंग्रेजों ने भारत को गुलाम बनाया। इस बीच भारत और यहां के लोगों को कई जुल्म सहने पड़े। साल 1947 आते आते भारत में पहले मुगलों की समाप्ति हुई फिर अंग्रेजों को पकड़ कमजोर हुई । 1947 के आसपास राजस्थान 22 रियासतों में बंटा हुआ था । 18 मार्च 1948 में सरदार पटेल और वीके मेनन ने राजस्थान की सभी 22 रियासतों को हिन्दुस्तान में मिलाने कि कोशिश की। यह सब इन दोनों के लिए आसान नहीं था । क्योंकि दूसरी तरफ मोहम्मद अली Jinnah भी इन रियासतों को अपनी तरफ मिलाने की कोशिश कर रहे थे। कुल सात चरणों में राजस्थान बना । जिसमे पहला चरण एक नवम्बर 1956 को पूरा हुआ । आजादी के बाद भी मोहम्मद अली जिन्ना को चैन नहीं था। वह किसी भी तरह पाकिस्तान सीमा से जुड़े इलाकों को निगलना चाहते थे। उनकी मंशा थी कि हमें जो मिलना तो मिल गया । अगर हम राजस्थान कि कुछ रियासतों पर अपना चादू चला सकें तो पाकिस्तान को एक बड़ा हिस्सा और मिल जाएगा । खोटी मंशा से शुरू हुई जिन्ना की पहल काम नहीं आई ।
क्या जोधपुर की रियासत पाकिस्तान (How a King Overturned Jinnah’s Move) में शामिल होना चाहती थी
एक खास बात यह है कि देशी रियासतें विलय के दौरान यह स्वतंत्रता थी कि वे चाहे तो हिंदुस्तान या फिर पाकिस्तान में शामिल हो सकती है पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना की मंशा थी कि जोधपुर रियासत पाकिस्तान में मिल जाए। जोधपुर के शासक हनवंत सिंह कांग्रेस के विरोधी थे ।और अपनी सत्ता स्वतंत्र अस्तित्व की महत्वकांक्षा में पाकिस्तान में खुद को शामिल करना चाहते थे। एक बार जोधपुर के शासक हनवंत सिंह दिल्ली गए जहां वह मोहम्मद अली Jinnah से मिले । उन्होंने जिन्ना से कहा कि हमें बंदरगाह की सुविधा ,रेलवे का अधिकरण, अनाज और शास्त्रों का आयात जैसी सुविधा की मांग की। जिन्ना समझ गए इससे अच्छा मौका नहीं हो सकता शासक खुद चलकर आए है तब जिन्ना ने इन सभी मांगी गई चीजों को देने का आश्वासन दिया।
यह बात किसी तरह जोधपुर के लोगो को पता चल गई और फिर जोधपुर का माहौल तनावपूर्ण हो गया। जोधपुर के ज्यादातर जागीदर जनता पाकिस्तान में शामिल होने के खिलाफ थे। लार्ड माउंटबेटन को यह बात पता चली तो उन्होंने शासक हनवंत सिंह को समझाया कि धर्म के आधार पर बंटे देश मुस्लिम रियासत न होते हुए भी पाकिस्तान में मिलने से उनके फैंसले से सांप्रदायिक भावनाए भड़क सकती है । लेकिन जोधपुर के शासक ने लॉर्ड माउंटबेटन की एक बात नहीं मानी । उनकी जिद्द थीं कि वह पाकिस्तान में शामिल होकर रहेंगे । उधर जिन्ना मांगी गई चीजों की तैयारियों में जुटे थे ।
सरदार पटेल ने समझाया हनवंत सिंह को
लॉर्ड माउंटबेटन से बात नहीं बनी तब उन्होंने सरदार पटेल से कहा कि तुम ही जोधपुर शासक को समझाओ जाकर । सरदार पटेल इससे पहले देश की कई रियासत को समझा मनाकर हिंदुस्तान में विलय करवा चुके थे । सरदार पटेल को बात पता चली तो वे सन्न रह गए। पटेल नहीं चाहते थे कि जोधपुर रियासत पाकिस्तान का हिस्सा बने। इसलिए सरदार पटेल ने शासक हनवंत सिंह से मुलाकात की और उनको आश्वासन दिया कि जो मांगे तुम पाकिस्तान से कर रहे हो वहीं मांगे आपको हिन्दुस्तान में मिलेंगी। तब हनवंत सिंह को समझ आया फिर उन्होंने समय को पहचानते हुए विलय पत्र में 1 अगस्त 1949 को हस्ताक्षर किए । विलय इतना आसान नहीं था इसलिए इसकी खाना पूर्ति होने मे पूरे सात चरण लगे।
पहले चरण में 18 मार्च 1948 को अलवर,भरतपुर, धौलपुर, करौली, रियासतों का विलय होकर मत्स्य संघ बनाया गया । धौलपुर के तत्कालीन राजा उदय सिंह राज प्रमुख और अलवर राजधानी बनी ।दूसरे चरण में 25 मार्च 1948 को कोटा , बूंदी , झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगंज और शाहपुरा का विलय हुआ। राजस्थान संघ बना। तीसरे चरण में 18 अप्रैल 1948 को उदयपुर का विलय हुआ तब राजस्थान का संयुक्त नाम राजस्थान संघ पड़ा। चौथे चरण में 30 मार्च 1949 को जोधपुर , जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर का विलय हुआ । इसी दिन राजस्थान की स्थापना भी हुई थी । पांचवा और छठा चरण में सिरोही रियासत विलय हुई । और अंतिम चरण 1 नवम्बर 1956 को आबुल , डेववादा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ।
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