Mouth cancer cases increased in India. कैंसर विश्व में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण है. भारत में भी कैंसर का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है.
कैंसर के लगभग 70 फीसदी मामले निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में होते हैं. इसमें से सबसे अधिक सामान्य है मुँह का कैंसर. वर्ष 2020 में दुनिया में मुँह के कैंसर के जितने मामले सामने आये, उनमें से एक तिहाई अकेले भारत में थे. मुँह के कैंसर के लगभग 60 से 80 फीसदी मरीज़ इस बीमारी की बढ़ी हुई अवस्था के साथ डॉक्टर्स के पास पहुंचते हैं.
एक अध्ययन के अनुसार, भारत ने वर्ष 2020 में लगभग 2,386 करोड़ रूपये मुँह के कैंसर के उपचार पर खर्च किये. इसमें बीमा कंपनियों की तरफ से किये गये भुगतान, सरकारी और निजी क्षेत्र का खर्च. मरीज़ का अपनी जेब से किऐ गये भुगतान और मदद के तौर पर किये गये खर्च भी शामिल है.अगर हम महंगाई को अलग रखे, तो भी इसी तेजी से अगले दस वर्षों में मुँह के कैंसर के इलाज से देश पर 23,724 करोड़ रूपये का आर्थिक बोझ पड़ेगा.
अध्ययन के अनुसार बीमारी के एडवांस्ड स्टेज के इलाज में शुरुआती चरण के मुताबिक 42% अधिक खर्च आता है. शुरुआती चरण के उपचार पर औसतन 1,17,135 रूपये खर्च होते हैं. जबकि एडवांस्ड स्टेज पर औसतन 2,02,892 रूपये खर्च होते है. एडवांस्ड स्टेज की बीमारी में केवल 20% की कमी की जाये तो सालाना 250 करोड़ की बचत हो सकती है.
पिछले दो दशकों में नये मामलों की डाईग्नोसिस दर में 68 फीसदी की वृद्धि हुई है. अधिकतर मामलों में रोगियों को तब पता चलता है जब कैंसर बढ़ कर अगले चरण में पहुँच जाता है. उसके हालत में उपचार करना मुश्किल होता है. इस बारे में लोगों को अधिक जानकारी न होने के कारण ऐसा होता है.
मुँह के कैंसर के लगभग सभी मामलों में किसी न किसी रूप में तम्बाकू और सुपारी की भूमिका होती है. ऐसे में इनके इस्तेमाल को रोके जाने की नीति होनी चाहिए.चिकित्सक और दंत चिकित्सक सही समय पर तम्बाकू और सुपारी का सेवन करने वाले व्यक्तियों की जाँच कर सकते हैं.
गौरतलब है कि यह अध्ययन इस बीमारी के उपचार पर आने वाली लागत का विश्लेषण शुरू करने के लिये किया गया है. इससे उन नीति निर्माताओं को जानकारी मिलेगी, जो कैंसर के लिए संसाधनों का आवंटन करते हैं.
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