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साहित्य स्पेशल : वो बारिश की शाम

मोनिका चौहान
“रागिनी, एक बार तो मिल ले, उस लड़के से। तब फैसला ले लेना। फिर जो तु कहेगी, वहीं करेंगे। ठीक है।” इतना कहते ही रागिनी की मां ने अपना हाथ उसके सिर पर रख दिया। अपनी नज़रें टेबल पर रखी तस्वीर पर गड़ाए रागिनी एकदम शांत बैठी थी। उसने कुछ नहीं कहा। थोड़ी देर बाद मां ने फिर कहा, “कल तक सोच ले। फिर हमें बता देना। बेटा, हम सिर्फ तेरी खुशी चाहते हैं।” इतना कहते मां कमरे से चली गई।

मन में उधेड़बुन लिए बैठी रागिनी क्या कहती अपनी मां से। “खुशी! पर मेरी खुशी जिसमें थी, वो तो वादा तोड़ कर चला गया।” रागिनी अपने मन में ये सब कुछ सोच रही थी।

दो साल पहले ही, तो रागिनी की शादी हुई थी। अपने बचपन के दोस्त अमर से, लेकिन देशभक्ति उसके प्यार पर भारी पड़ गई और शादी के एक साल बाद ही अमर आतंकवादियों के खिलाफ लड़ाई में शहीद हो गया। टेबल पर रखी उसकी तस्वीर को निहारते हुए दो बूंद आंसू रागिनी के हाथों पर गिर आए। पिछले एक साल से उसने अपनी आत्मा को अमर की इस तस्वीर के साथ एक कमरे में बंद किया हुआ था।

उसके मां-बाप ने और सास-ससुर ने कितनी कोशिश की। उसे जीवन में आगे बढ़ने के लिए मनाते हुए अब वो भी थक चुके थे। मगर, उसने अमर के साथ अपनी ज़िंदगी को खत्म करने का फैसला कर लिया था। अपने मुट्ठी के नीचे ज़हर की शीशी दबाए रागिनी ने आज फैसला ले लिया था कि वो आज हमेशा-हमेशा के लिए अपने अमर की हो जाएगी। इस दुनिया में नहीं, तो उस दुनिया में ही सही।

रह-रह कर उसे अमर की बात याद आ रही थी, जब पोस्टिंग के लिए घर से निकलने से पहले वो उसके साथ कमरे में थी। “रागिनी, ये आंसू बहाने का समय नहीं है। विरह के पलों को जीने का अपना ही एक अलग मज़ा है। मैं वापस आऊंगा और फिर हम घूमने चलेंगे। मां-पापा का ख्याल रखना। ठीक है।” अमर के इन शब्दों को याद करते हुए रागिनी अपने आप से बड़बड़ाते हुए कह रही थी, “अब बर्दाश्त नहीं होता, अमर। बहुत इंतज़ार किया तुम्हारा। अब मैं आ रही हूं, तुम्हारे पास।”

इसके बाद, ज़हर की शीशी नीचे ज़मीन पर गिर गई। शीशी के गिरने की आवाज़ सुनते मां कमरे में आई, तो रागिनी को बेसुध पलंग पर पड़े देख घबरा गई। उन्होंने तुरंत अपने पति को आवाज़ लगाई और कुछ समय बाद अस्तपताल की एंबुलेंस रागिनी के घर के बाहर खड़ी थी। आस-पास पड़ोसियों की भीड़ थी। आपस में सब खुस-पुसा रहे थे। बगल की शर्मा आंटी अरोड़ा आंटी से कह रही थी, “ये तो होना ही था। मुझे तो कब से लग रहा था कि ये सब होगा। अरे, पति के मरने के बाद से कमरे से बाहर ही नहीं निकलती थी। कभी मां-बाप बाहर लाते घुमाने, तो बस सिर नीचे झुकाए चलती रहती थी। बेचारी।”

इस खुस-पुसाहट के बीच एंबुलेस वहां से निकल गई। अस्पताल पहुंचते ही रागिनी को एमरजेंसी वार्ड में ले जाया गया। वहां डॉक्टरों ने उसका चेक-अप किया और उसके बाद, इलाज के लिए ले जाया गया। कुछ देर बाद, एक डॉक्टर बाहर आया। रागिनी के पिता सीधा डॉक्टर के पास पहुंचे। वो डर के मारे कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे कि डॉक्टर ने उनकी हालत देखते हुए कहा, “घबराने की बात नहीं है। ज़हर शरीर से निकाल दिया गया है। अब बस रागिनी के होश में आने का इंतज़ार है। ये सुसाइड का मामला है। इसलिए, पुलिस को भी फोन कर दिया गया है। आपको बस, कुछ कार्यवाही पूरी करनी होगी। चिंता मज कीजिए, हम उसका पूरा ख्याल रख रहे हैं।”

कुछ देर बाद, पुलिस भी अस्पताल पहुंच गई। इंस्पेक्टर अभिनव ने डॉक्टर से बात की और इसके बाद, रागिनी के माता-पिता से बात करके सारे मामले की जानकारी ली। उसे बस अब रागिनी के होश में आने का इंतज़ार था, ताकि वो इस मामले की कार्यवाही को पूरा कर सके। कुछ घंटे बाद, रागिनी को होश आ गया। रागिनी की मां अपनी बेटी की हालत देख रो पड़ी। उसके पिता का भी बुरा हाल था। अपने माता-पिता को देख रागिनी भी रो पड़ी। कुछ देर बाद, इंस्पेक्टर अभिनव कमरे में आया। उसने रागिनी के माता-पिता को बाहर जाने के लिए कहा, ताकि वो रागिनी से पूछताछ कर सके।

अभिनव ने रागिनी के पास बैठते हुए कहा, “कैसी हैं आप?” रागिनी ने बिना कोई जवाब देते हुए अपना मुंह फेर लिया। वो अब किसी से कोई बात नहीं करना चाहती थी। अभिनव ने बेड के दूसरी ओर जाते हुए कहा, “देखिए, मैं बस अपनी कार्यवाही पूरी करने आया हूं। मुझे बस आपसे कुछ सवाल पूछने हैं और उसके बाद, मैं चला जाऊंगा।” रागिनी ने इस बार अभिनव को घूर कर देखा। उसकी आंखें अपने अमर से न मिल पाने की पीड़ा से भरी हुईं थी। उसकी आंखों को देख माने अभिनव उसके दुख को महसूस कर रहा था। वो बिना कुछ कहे वहां से चला गया। कमरे के बाहर जाकर अभिनव ने डॉक्टर से कहा, “उनकी हालत ठीक नहीं लगती। मैं कल आकर बात करता हूं।” इतना कहते ही अभिनव वहां से चला गया।

अगले दो दिन अभिनव ने रागिनी से बात करने की कोशिश की, लेकिन वो मानो एक लाश सी बन गई हो। वो न अपने मां-बाप से बात करना चाहती थी और न ही अभिनव से। रागिनी के बात न करने से इस केस की कार्यवाही अभिनव पूरी नहीं कर पा रहा था। एक केस में इतना समय लगने के कारण उसके बड़े अधिकारी भी उसे परेशान कर रहे थे। तीसरे दिन रागिनी की छुट्टी हो गई और वो अपने माता-पिता के साथ घर चली गई। रागिनी ने फिर एक बार अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था। उसने अब किसी से बात करना भी बंद कर दिया था।

उसकी इस हालत को देख डॉक्टर से बात करने के बाद, उसके मां-बाप ने रागिनी का काउंसिल शुरू करने की ठानी। डॉ. चैतन्य ने रागिनी की काउंसिल ली। कुछ दिनों तक उस पर किसी भी तरह का असर न देखते हुए, उन्होंने आखिर में रागिनी को काउंसिल के लिए अस्पताल आने को कहा। उन्होंने अब दूसरे तरीके से रागिनी की काउंसिल शुरू करने के बारे में सोचा।

रागिनी अस्पताल नहीं जाना चाहती थी, लेकिन अपने मां-बाप के कई बार कहने पर आखिरकार उसने हामी भर दी। अस्पताल पहुंचते ही डॉ. चैतन्य ने रागिनी के हाथ में एक फाइल दे दी। उन्होंने रागिनी से कहा कि उन्हें एक असिस्टेंट की जरूरत है, जो उनके साथ वालिंटियर कर सके। रागिनी ने साइकोलॉजी में स्नातक की थी, लेकिन ज़िंदगी जब ऐसे बड़ी ठोकरें लगाती है, तो ये डिग्री किसी काम नहीं आती। रागिनी ने जब डॉ. चैतन्य से पूछा, तो उन्होंने कहा, “तुमने साइकोलॉजी में स्नातक की है और मुझे एक असिस्टेंट की जरूरत है। इतनी पढ़ी-लिखी होने का कुछ, तो फायदा उठाओ। तुम मेरी मदद तो कर ही सकती हो। क्यों?”

रागिनी ने पहले, तो मना कर दिया। मगर कुछ देर सोचने के बाद इस काम के लिए हामी भर दी। अमर हमेशा से चाहता था कि रागिनी अपना क्लीनिक खोले। आज उसके पास ये मौका था, सो उसने अमर के लिए इस काम को करने की ठान ली। डॉ. चैतन्य ने उसी दिन से रागिनी से वालिंटियर का काम करवाना शुरू कर दिया। अस्पताल में सुसाइड के जो भी केस आते, डॉ. चैतन्य वो केस रागिनी को संभालने के लिए देते। वो चाहते थे कि रागिनी इस बात को जाने की ज़िंदगी ने कैसे उसे दूसरा मौका दिया है। सुसाइड केस होने के कारण इंस्पेक्टर अभिनव भी अस्पताल आया करते थे। रागिनी का उनसे संपर्क होना लाज़मी था। वो अभिनव से केस के बारे में,तो बात करती लेकिन अपने बारे में खुलना उसे ज़रा भी पसंद नहीं था। अभिनव ने बाकी के केस,तो सुलझाए लेकिन रागिनी का केस अभी तक नहीं सुलझा पाया था।

एक शाम रागिनी अपना काम खत्म करके अस्पताल से जा रही थी। बाहर तेज बारिश भी हो रही थी कि तभी सुसाइड का एक केस अस्पताल आया। खून से लतपत एक लड़की को स्ट्रैचर पर ले जाया जा रहा था। उसे सीधा ऑपरेशन थियेटर ले जाया गया। रागिनी भी वहीं थी और कुछ देर बाद इंस्पेक्टर अभिनव भी अस्पताल पहुंच गए थे। ऑपरेशन थियेटर के बाहर रोते-बिलखते माता-पिता को देख रागिनी को महसूस हुआ कि किस तरह उसके मां-बाप भी उसे देख दुखी हुए होंगे। उसने उनके पास जाकर उन्हें ढांढस बंधाने की कोशिश की।

कुछ घंटों बाद, डॉ. ऑपरेशन थियेटर से बाहर गए। उन्होंने उस लड़की के मां-बाप के पास जाकर कहा, “माफ कीजिएगा, हम आपकी बेटी को नहीं बचा पाए।” इतना कहते ही मां-बाप ज़ोरों से रोने-बिलखने लगे। डॉ. ने कहा, “लेकिन हमने किसी तरह बच्चे को बचा लिया।” डॉ. इस बात को सुनकर, उस लड़की के पिता ने कहा, “देखिए, डॉ. साहब। हम अपनी बच्ची को खो चुके हैं। हमें ये बच्चा नहीं चाहिए। इस बच्चे के कारण उसने अपनी जान दी है।” इतना कहते हुए मां-बाप वहां से चले गए। रागिनी उस लड़की के मरने की बात सुनकर सदमें में थी।

इंस्पेक्टर अभिनव ने मामले की तहकीकात के लिए डॉ. से बात की। डॉ. ने कहा, “लड़की नाबालिक है। 17 साल की। वो घर से एक लड़के के साथ भाग गई थी, जब लौटी, तो 5 महीने की प्रेग्नेंट थी। आज सुबह उसने अपने घर की बालकनी से कूद कर सुसाइड कर लिया। सिर पर चोट लगने के कारण ज़्यादा खून बह गया था, सो हम उसे बचा नहीं पाए। बच्चे को किसी तरह बचाने की कोशिश की, लेकिन अब उसे अनाथआश्रम में डालना पड़ेगा।”

रागिनी डॉक्टर की सारी बात सुन रही थी कि तभी उसने अचानक डॉ. से कहा, “क्या मैं बच्चे को देख सकती हूं।” रागिनी को अस्पताल मे काम करते हुए एक महीना हो गया था और इसलिए, सबसे उसकी पहचान हो गई थी। ऐसे में डॉ. ने बच्चे को देखने के लिए रागिनी को मंजूरी दे दी। डॉ. की मंजूरी मिलते ही रागिनी नर्सरी की ओर भागी। वहां, नर्स से पूछने के बाद, वो बच्चे के पास गई। झूले पर नींद में प्यारी सी मुस्कान के साथ लेटी हुई उस परी को देख रागिनी के अंदर मानो जान भर आई हो। उसने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए उसे देखा कि तभी रागिनी की उंगली किसी मुलायम स्पर्श से सरोबार हो गई। उस बच्ची ने अपनी नींद में ही रागिनी की उंगली को कस के पकड़ लिया था।

अनजाने में उस नन्ही सी बच्ची के इस स्नेह भरे स्पर्श ने मानो रागिनी के अंदर जीवन की एक नई कोंपल को जन्म दे दिया। जैसे, सूखी धरती पर बारिश की बूंद से मिट्टी पिघल जाती हो, वैसे ही अमर के जाने के बाद लाश सी बन चुकी रागिनी के अंदर उस बच्ची ने जान फूंक दी। रागिनी की आंखें इस बार अमर की यादों से नहीं, बल्कि ममता के स्नेह के एहसास से भर आई थीं। उसने उस बच्ची को अपनी गोद में उठा लिया।

कुछ देर बाद, डॉ. नर्सरी में आए। रागिनी की बाहों में उस बच्ची को देखकर डॉ. चैतन्य हल्के से मुस्कुराए। इंस्पेक्टर अभिनव भी वहां, पहुंच गए थे। डॉ. चैतन्य को देख रागिनी ने उनसे कहा, “अमर के जाने के बाद, मेरी ज़िंदगी मुझे व्यर्थ सी लगती थी। मानो, जैसे ज़िंदगी में कुछ रह ही नहीं गया हो। मां-बाप को अपने दुख से इस तरह दुखी होते देख और अमर के खोने का दुख मैं सह नहीं पाई थी। इसलिए, मैंने भी सोचा कि अगर मैं मर जाती हूं, तो अमर को पा लूंगी और कहीं न कहीं, मेरे जाने से शायद मेरे मां-बाप का दुख कुछ कम हो जाए। लेकिन, मैं गलत थी। ज़िंदगी भगवान की कितनी बड़ी देन होती है, ये आज मुझे समझ आया। वो हमें किसी न किसी मकसद से यहां भेजता है और मुझे आज वो मकसद समझ आया। ये बच्ची मेरी है और मैं इसे अनाथ नहीं होने दूंगी। मैं इसकी मां हूं।”

रागिनी के इतना कहते ही इंस्पेक्टर अभिनव ने डॉ. चैतन्य से कहा, “चलिए, डॉ. जी। मेरा ये सबसे लंबा केस अब खत्म हुआ।” इसके बाद, अभिनव रागिनी के पास गया। उस बच्ची के सिर पर हाथ फेरते हुए इंस्पेक्टर अभिनव ने रागिनी से कहा, “इस एक महीने में आपसे जो मुलाकातें हुईं उन्हें मैं कभी भूल नहीं पाऊंगा। मुझे गलत मत समझिएगा। आपने जीवन में जो खोया, उसकी तुलना करना भी मेरे लिए नामुमकिन है। लेकिन, इतना कहना चाहूंगा कि जीवन में कभी-भी आपको ऐसा लगे कि आपको हमसफर की तलाश है, तो मैं आपको आपके साथ खड़ा मिलूंगा। मैं आपका इंतज़ार करूंगा।”

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