Kookrukoo_Sahitya : मेरा यार वो सरहद पार है
मेरा यार वो सरहद पार है हरी अम्बियों की डारी पर
खेले बहुत से झूले हमने,
लगाकर गांव की गलियों के चक्कर
बनाई नई यारी संग में।
ईद को उसकी बैसाखी अपनी
साथ मिलकर मनाते थे,
खिचड़ी-सैवई का पहला निवाला
इक-दूजे को खिलाते थे।
उसके अब्बू, मेरे बाबा की
यारी बहुत पुरानी थी,
पीढ़ी की ये रस्म तो
हमको भी निभानी थी।
पर एक सैलाब ने अलग किया
हम दोनों की यारी को,
बंटवारे की फूट ने मारा
अपनी हिस्सेदारी को।
1947 का वक्त
वो खूनी आया था,
यारी के टूटे रिश्ते का जख्म
गहरा जिसने लगाया था।
नन्हें से कदमों का रुख
ऐसा मोड़ दिया उसने,
देश के उस बंटवारे का
बड़ा भुगतान किया हमने।
पीछे छूटी उस यारी को
भूल न मैं पाया था,
पर बचपन छूटा मेरा
यौवन का मौसम आया था।
फिर सरहद पर तैनात हुआ
बना देश का रखवाला,
पर दिल में अब भी रहता
दोस्त मेरा वो मतवाला।
देश की रक्षा की वर्दी
सीने पर धारी थी,
और सरहद पर अब
जंग छिड़ने की बारी थी।
तैयार हैं तोपें भी उनकी
तैयार हमारी फौजें हैं,
पर आंखें तो उनमें अपने
अब्दुल्ला को खोजे हैं।
धुंधली सी एक छवि पुरानी
फिर नजरों में आई है,
अंबिया की डारी पर लटका जो संग
ऐसी उसकी परछाई है।
मूंछे बड़ी सी, बाहों में बल
हथियार बगल में रखे है,
जानी-पहचानी नजरों से
वो भी मुझको देखे है।
ये वक्त है कैसा, जिसने अब जाकर
हम दोनों को मिलाया है,
सरहद की दीवार पर
दुश्मन खड़ा दिखाया है।
क्यों बंटवारा दोस्ती का
किस्मत में हमारी था,
कोंस रहा इस वक्त को मैं
ये सहना बहुत भारी था।
कैसी जंग, कैसी लड़ाई
कैसा ये सितम हम पर था,
बंटवारे का वार, फिर एक बार
बिछड़ी यारी पर था।
देखे है मुझको घूर के
वो भी बहुत दूर से
सरहद के आर-पार खड़े
हम दोनों मजबूर से
पर गले लगाना है उसको
बरसों बिछड़ा वो यार है।
मिला भी ऐसे है मुझको
मेरा यार वो सरहद पार है।