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धनतेरस 2020 : ऐसे करें यमराज को खुश और बचे अकाल मृत्यु से

औषधियों के जनक भगवान धनवंतरी की जयंती यानी धनतेरस का पर्व इस बार 13 नवंबर 2020 को मनाया जाएगा। धनतेरस पर लोग नई वस्तु खरीदते हैं और यह दिन यमराज को प्रसन्न करने का दिन भी होता है। इस दिन शाम के समय मुख्य द्वार के बाहर, दक्षिण दिशा की तरफ भगवान यमराज के नाम के दीपक जलाते हैं ताकि हम सभी अकाल मृत्यु से बच सकें।

पंडित पुरुषोत्तम सती

दीपावली के 5 दिवसीय त्योहार में सबसे पहले दिन धनतेरस का पर्व आता है और इस तरह रोशनी के पर्व दिवाली की शुरुआत होती है। धनतेरस का दिन यमराज को प्रसन्न करने का दिन होता है।

इसी दिन, नरक चतुर्दशी, नरक चौदस, नर्का पूजा और छोटी दीपावली भी है।

धन्वन्तरि देवताओं के चिकित्सक हैं और चिकित्सा के देवता माने जाते हैं, इसलिए चिकित्सकों के लिए धनतेरस का दिन बहुत ही महत्वपूर्ण होता है।

इसी कारण भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने धन्वंतरी जयंती को *आयुर्वेद दिवस* घोषित किया है

*धनतेरस इस बार दीवाली से सिर्फ एक दिन पहले कैसे?*

धनतेरस का पर्व उस दिन मनाना चाहिए जिस दिन कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी प्रदोष से संयोग करे जो कि 13 नवंबर को है। अतः इसी दिन धनतेरस मनाना उचित है।

धनतेरस का पर्व शाम को 6 बजे तक होगा जिसमें आप नई वस्तु खरीद सकते हैं।

*धनतेरस मनाने का कारण:*

समुद्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी अमृत कलश के साथ प्रकट हुए थे इसी कारण से धनतेरस को भगवान धनवंतरी की पूजा की जाती है । धनतेरस दिवाली के दो दिन पहले मनाया जाता है परन्तु इस बार धनतेरस 13 नवंबर को मनाया जाएगा।

धनवंतरी जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर लोग धनिया के बीज खरीद कर भी घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं।

धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है; जिसके सम्भव न हो पाने पर लोग चांदी के बने बर्तन खरीदते हैं। इसके पीछे यह कारण माना जाता है कि यह चन्द्रमा का प्रतीक है जो शीतलता प्रदान करता है और मन में सन्तोष रूपी धन का वास होता है। *संतोष को सबसे बड़ा धन कहा गया है। जिसके पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है, और वही सबसे धनवान है।* भगवान धन्वन्तरि जो चिकित्सा के देवता भी हैं। उनसे स्वास्थ्य और सेहत की कामना के लिए संतोष रूपी धन से बड़ा कोई धन नहीं है। लोग इस दिन ही दीपावली के लिए लक्ष्मी, गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं।

*धनतेरस में यमराज की पूजा क्यों?*

धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में भगवान यमराज के नाम के दीपक जलाने की प्रथा भी है। इस प्रथा के पीछे एक कारण है। कथा के अनुसार किसी समय में एक राजा थे जिनका नाम हेम था। दैव कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ज्योंतिषियों ने जब बालक की कुण्डली बनाई तो पता चला कि बालक का विवाह जिस दिन होगा उसके ठीक चार दिन के बाद वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा इस बात को जानकर बहुत दुखी हुए और राजकुमार को ऐसी जगह पर भेज दिया जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर से गुजरी और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये और उन्होंने गन्धर्व विवाह कर लिया।

विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन बाद यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार प्राण ले जा रहे थे उस वक्त नवविवाहिता उसकी पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा। परन्तु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमराज को जब यमदूत यह कह रहे थे, उसी समय उनमें से एक दूत ने यम देवता से विनती की- हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के इस प्रकार अनुरोध करने से यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी की रात जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेंट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि लोग इस दिन घर से बाहर दक्षिण दिशा की ओर दीप जलाकर रखते हैं।

*यमराज की पूजा का मंत्र:*

*मूत्युना पाशहस्तेन कालेन भार्यया सह। त्रयादश्या दृपिदानात्सूर्यजः प्रीयतामिति॥*

नरक चतुर्दशी का महत्व:
इस बार तो धनतेरस और नरक चतुर्दशी एक ही दिन है परन्तु अगर अलग अलग दिन होती तो मन में प्रश्न आना स्वाभाविक है कि नरक चतुर्दशी क्यों मनाई जाती है और इसमें क्या विशेष किया जाता है।

नरक चतुर्दशी का व्रत इसलिए किया जाता है ताकि हमको उन सब अपराधों से मुक्ति मिले जिसके कारण हमको नरक प्राप्त हो सकता है। इसीलिए कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन प्रातःकाल तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में डालकर स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है। विधि-विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो स्वर्ग को प्राप्त करते हैं।

शाम को दीपदान की प्रथा है जिसे यमराज के लिए किया जाता है।

*पंडित पुरूषोतम सती ( Astro Badri)*
Greater Noida West
9450002990

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