दिल का दरवाज़ा
दिल का दरवाज़ा। उसकी प्यारी सी आँखों को देखकर मेरे दिल के उस दरवाजे पर जो दस्तक हुई ,उसे मैं समझ नहीं पाई थी। आखिर क्या हो गया था मुझे उन आँखों को देखकर।
दिल के जिस दरवाजे को मैंने २ साल पहले अर्जुन के जाने के बाद हमेशा के लिए बंद कर दिया था, फिर क्यों आज इन आँखों को देखकर उन्हें खोलने को मजबूर होना पड़ा है. ये सब ही सोच रही थी की अचानक वो आँखें मुझे देखकर मुस्कुराई।
मैं भी मुस्कुरा दी या फिर उनका आकर्षण मुझे मुस्कुराने पर मजबूर कर रहा था. धीरे धीरे वो आँखें मेरी और बढ़ने लगी. मुझे अजीब सी बेचैनी हो रही थी. तभी एक नन्हे से हाथ ने मेरा आँचल पकड़ लिया और वो सुन्दर आँखें फिर मुझे निहारने लगी।
उन्हें देखकर आज मुझे अर्जुन की याद आ रही थी। तभी एक आवाज़ सुनकर मैं धक से ज़मीन पर बैठ गई। माँ, हाँ यहीं तो कहा था उन दो आँखों से जुड़े नन्हे होठों ने। मानो मैं फिर २ साल पीछे चली गई, जब मेरा अर्जुन दिन भर माँ-माँ करता मेरे पीछे घूमता था।
लेकिन एक बुरी बीमारी ने उसे मुझसे छीन लिया। एक डाक्टर होने के बावजूद मैं अपने बच्चे को नहीं बचा पाई। कई महीनो तक मैंने अपने आप को एक कमरे में बंद रखा, फिर अपने काम पर वापस लौट आई।
लेकिन आज इस अनाथाश्रम से गुजरते हुए उन आँखों को देखा, तो रुकने पर मजबूर हो गई और फिर माँ शब्द ने मेरे दिल के उस दरवाजे को खोल दिया, जिसे मेरे अर्जुन की मौत ने बंद कर दिया था। मेरे आँचल को पकडे हुए उन हाथों को अपने हाथों मैं थामकर, जब मैंने पूछा कि आपका नाम क्या है बेटा, तो सामने से आवाज़ आई अर्जुन।
दिल का दरवाज़ा