kukrukoo
A popular national news portal

जानिए क्या होता है मलमास, करें ये काम, मिलेगा पुण्य

नई दिल्ली। हम सभी सुनते रहते हैं कि यह मास अधिकमास या मलमास है जिसके बाद कई बार हम उस विषय में सोचते नहीं है या जब सोचते हैं तो कुछ प्रश्न हमारे मस्तिष्क में अवश्य आते हैं जैसे ये मास क्या है, यह दूसरे माह से अलग कैसे है? मेरे लिए तो 12 महीने का ही समय है फिर ये अधिकमास की क्या प्रासंगिकता है? इस बारे में विस्तार से बता रहे हैं पंडित पुरुषोत्तम सती।

पंडित पुरुषोत्तम सती

इस विषय में हम चर्चा को आगे बढ़ाएं उससे पहले हम एक तथ्य स्पष्ट कर दें कि इसको अधिकमास या मलमास या अधिक मास, मलिम्लुच मास, संसर्प मास अथवा पुरूषोतम मास के नाम से जानते हैं इसलिए कोई भी नाम आपके सामने आए, मतलब एक ही है।

अधिकमास क्या है?

यह एक खगोलशास्त्रीय तथ्य है कि सूर्य 30.44 दिन में एक राशि को पार कर लेता है और यही सूर्य का सौर महीना है। ऐसे बारह महीनों का समय जो 365.25 दिन का है, एक सौर वर्ष कहलाता है। चंद्रमा का महीना 29.53 दिनों का होता है जिससे चंद्र वर्ष में 354.36 दिन ही होते हैं। इस तरह दोनों के कैलेंडर वर्ष में 10.87 दिन का फ़र्क़ आ जाता है और यह अंतर 32.5 महीना के बाद यह एक चंद्र माह के बराबर हो जाता है। इस समय को समायोजित करने के लिए हर तीसरे वर्ष एक अधिक मास होता है। अर्थात् प्रत्येक 33वाँ चांद्रमास अधिक मास सिद्ध होता है । जैसा कि आचार्य वशिष्ठ का इस सन्दर्भ में वचन है –

द्वात्रिंशद्भिर्गतैर्मासैर्दिनैः षोडशभिस्तथा। घटिकानां चतुष्केन पतति ह्यधिमासकः ॥ (बसिष्ठसंहिता)

एक अमावस्या से द्वितीय अमावस्या के मध्य में अर्थात् प्रत्येक चान्द्रमास में सूर्य की मेष,वृष आदि राशियों में संक्रान्ति से ही वह चान्द्रमास मान्य होता है । यथा ब्रह्मसिद्धान्त का वचन है कि-

मेषादिस्थे सवितरि यो यो मास प्रपूर्यते चन्द्रः । चैत्रायः स विज्ञेयः पूर्तिद्वित्वेऽधिमासोऽन्यः॥ (ब्रह्मस्फुटसिद्धान्त )

जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास होता है। इसी प्रकार जिस माह में दो सूर्य संक्रांति होती है वह क्षय मास कहलाता है।

असंक्रान्तिमासोऽधिमासस्स्फुटस्स्यात् । द्विसंक्रान्तिमासःक्षयाख्यः कदाचित् ॥ (सिद्धान्तशिरोमणि)

इन दोनों ही मासों में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, परंतु धर्म-कर्म के कार्य पुण्य फलदायी होते हैं

इस वर्ष में अधिकमास:

इस वर्ष आश्विन मास अधिक मास है जो कि 18 सितम्बर से 16 अक्टूबर तक रहेगा। आश्विन मास में अधिक मास की स्थिति 19 वर्ष बाद बन रही है। इसके पूर्व सन् 1899, 1963, 1982, 2001 में आश्विन मास मलमास के रूप में आया है। आगे 2039 में आश्विन मास अधिक मास होगा । प्रायः 19 वर्षों के बाद अधिमास, ग्रहण इत्यादि घटनाओं के उसी क्रम से घटने की संभावना खगोलीय दृष्टि से रहती है, इसीलिए आचार्य वेंकटेश केतकर ने केतकी ग्रहगणित में 19 वर्षों का चक्र भी स्वीकार किया है। अतः समान चांद्रमास के हर उन्नीसवें वर्ष में प्रायः अधिक मास के रूप में आने की स्थिति बनती है। ध्यातव्य है कि इस बार सूर्य की कन्या राशि में संक्रान्ति 17 सितम्बर को तथा तुला राशि में संक्रान्ति 18 अक्टूबर को है। अधिकमास के कारण ही इस बार पितृ विसर्जन अमावस्या के दूसरे दिन से नवरात्र का शुभारंभ नहीं हुआ।

अधिक मास में क्या करें और क्या ना करें:
अधिक मास में क्या करें और क्या ना करें इस विषय का विशेष वर्णन धर्मशास्त्रीय ग्रन्थों में जैसे कालमाधव, कृत्यसार समुच्चय, निर्णयसिन्धु आदि ग्रन्थों में प्राप्त होता है। शास्त्रों के अनुसार अधिक मास में नित्य कर्म हेतु कोई निषेध नहीं है परन्तु नैमित्तिक अनुष्ठानों का परित्याग करना चाहिए तथा अधिकाधिक भगवान नारायण की सर्वविध उपासना अत्यन्त फलप्रदा मानी गई है। ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से शुभाशुभ मुहूर्तों के निर्धारण में अधिमास को अशुभ माना गया है । जैसे नवनिर्माण, अन्नप्राशन, देवस्थापन, प्राण प्रतिष्ठा, संस्कार अनुष्ठान, जनेऊ, वृषोत्सर्ग, विवाह, वधू प्रवेश, दीक्षा ग्रहण, नयी यात्रा, नवीन कार्यारम्भ, तीर्थ दर्शन, शिलान्यास, चातुर्मास्य यज्ञ, नैमित्तिक याग, महादान, गृह प्रवेश, भूमि पूजन, चूड़ाकर्म ( मुण्डन) इत्यादि कार्यों में अधिक मास का त्याग करना चाहिए । मुहूर्तचिन्तामणि में आचार्य राम दैवज्ञ ने इसकी विशेष चर्चा की है। इस प्रकार अधिमास के महत्त्वपूर्ण कालखण्ड में यथासम्भव शास्त्रोक्त विधि से भगवदुपासना तथा अभ्यर्चना करते हुए इस पुरुषोत्तम मास का लाभ सभी को लेना चाहिए।

देवी भागवत पुराण के अनुसार अधिकमास में कुछ विशेष कर्म बहुत फल दायक होते हैं जैसे: सत्यनारायण कथा, रुद्राभिषेक, भागवत, महामृत्युंजय जप, इत्यादि कार्यों को मलमास में करने से 10 गुना अधिक फल मिलता है।

अधिकमास में हो सकता है:

ऐसा हर कार्य जिसके लिए मुहूर्त जरूरी नहीं होता है वो कार्य हो सकते हैं जैसे: जन्मदिन पूजन, नामकरण (अग्नि पुराण में नामकरण वर्जित है), मृत क्रिया, मासिक श्राद्ध, सत्यनारायण कथा, रुद्राभिषेक, भागवत, जप इत्यादि।

अधिक मास की यह व्यवस्था निश्चित रूप से हमारी सनातन वैदिक ज्ञान परम्परा की वैज्ञानिकता को प्रमाणित करती है कि किस प्रकार वैज्ञानिक पद्धति से हमारे ऋषि महर्षियों ने समय के अन्तर का समन्वय धर्मशास्त्रीय संतुलन रखते हुए स्थापित किया तथा जिसके आधार पर आज भी सांस्कृतिक दृष्टि से हमारे पर्वो, उत्सवों तथा धार्मिक अनुष्ठानों का ऋतुओं के साथ संतुलन बना हुआ है। प्रत्येक पर्व और त्यौहार एक विशेष ऋतु में ही होता है। अगर मलमास का संतुलन ना हो तो हो सकता है होली वर्षा ऋतु में आए (उदाहरणार्थ)।
हम सभी जानते हैं कि पश्चिमी देशों में 13 के अंक को अशुभ माना जाता है जिसका कोई आधार नहीं है। मुझे लगता है जिस प्रकार हमारी संस्कृति में 13वें माह (मलमास) में धार्मिक कार्य वर्जित हैं उसी प्रकार पश्निमी देशों में 13 वीं संख्या को अशुभ माना है।

पंडित पुरूषोतम सती (Astro Badri)
ग्रेटर नोएडा वेस्ट
8860321113

Get real time updates directly on you device, subscribe now.

You might also like