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चार एपिसोड में पेश है, प्यार के एहसास की ये कहानी- साथी

एक ऐसी कहानी, जिसके दो अलग-अलग पहलू, लेकिन दर्द और एहसास एक थे।

एपिसोड-1 (अलविदा, हुसैन)

लक्ष्मण चौक पुलिस स्टेशन पहुंचकर हवलदार ने वहां के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी पवन बिष्ट को पास में हुए सड़क हादसे के बारे में जानकारी दी। हवलदार की बात सुनकर पवन सीधे दुर्घटना स्थल की ओर निकलने के लिए गाड़ी में बैठा ही था कि तभी उसके फोन की घंटी बजी। दूसरी ओर से मां की आवाज़ सुनाई दी। “पवन बेटा, सुनो। रावत अंकल ने एक बहुत अच्छा रिश्ता भिजवाया है। एक बार…” मां अपनी बात पूरी करती, इससे पहले ही पवन ने उन्हें बीच में टोकते हुए कहा, “मां, अभी मैं इस बारे में बात नहीं कर सकता हूं। बहुत ज़रूरी काम से जाना है। बाद में बात करते हैं। बाय।”

इतना कहते ही पवन ने फोन रख दिया और हवलदार को दुर्घटना स्थल जाने के लिए कहा। वहां, पहुंचते ही हवलदार ने वहां जमा हुई भीड़ को हटाया और कुछ लोगों से पूछताछ शुरू कर दी। पवन घटनास्थल का मुआयना कर रही रहा था कि तभी हवलदार ने आकर बताया कि किसी बाइक सवार युवक को पीछे से ट्रक ने टक्कर मारी है। घायल हुए युवक को पास के अस्पताल ले जाया गया है और ट्रक चालक फरार है। पवन ने हल्के से सिर हिलाते हुए हवलदार को अस्पताल चलने के लिए कहा। वह जीप में बैठा ही था कि तभी एक 14 साल का लड़का उसके पास आया और उसने पवन के हाथ में एक फोन थमाते हुए कहा, “सर, ये उन भैया का फोन है, जिनका एक्सिडेंट हुआ था।” उस लड़के की ओर थोड़ी देर तक देखने के बाद, पवन ने उसका शुक्रिया अदा किया और फिर वह अस्पताल की ओर चल दिया।

अचानक कुछ देर बाद, उस फोन की घंटी बजने लगी। फोन की स्क्रीन पर ‘साथी’ नाम से एक नाम चमक रहा था। क्योंकि, यह एक दुर्घटना का केस था। इसलिए, पवन ने फोन का जवाब देना ज़रूरी नहीं समझा। थोड़ी देर बाद, पवन अस्पताल पहुंच गया। उसने फोन को अपनी जेब में रखा और रिसेप्शन पर जाकर दुर्घटना में घायल हुए युवक के बारे में पूछताछ करने लगा। थोड़ी ही देर में वह ऑपरेशन थियेटर के आगे खड़ा था। वह ऑपरेशन पूरा होने का इंतज़ार कर रहा था कि तभी फिर से फोन की घंटी बजी। फिर से वहीं नाम फोन की स्क्रीन पर चमका। इस पर पवन को लगा कि उसे फोन उठा लेना चाहिए, वो फोन उठाने ही वाला था कि तभी उसने ऑपरेशन थियेटर से डॉक्टर को बाहर आते हुए देखा।

डॉक्टर को बाहर आते देख पवन ने उनसे युवक के बारे में पूछताछ की तो, उन्होंने कहा, “सिर पर गहरी चोट आई है। बहुत खून बह चुका है। अगले 48 घंटों तक कुछ कहा नहीं जा सकता। हम उस पर नज़र बनाए रखेंगे।” इतना जानने के बाद, पवन ने डॉक्टर से युवक की हालत के बारे में जानकारी देने की बात कही और फिर वो वहां से चला गया। थाने पहुंचने के बाद, पवन ने फोन को टेबल पर रखा और हवलदार को चाय लाने के लिए कहा। उसने पानी के ग्लास से एक घूंट गले में डाला ही था कि फिर एक बार फोन की घंटी बजी। हालांकि, इस बार ‘अम्मी’ शब्द फोन की स्क्रीन पर चमका और पवन ने फोन को उठाकर उस युवक की दुर्घटना के बारे में सारी जानकारी युवक की मां को दी। सामने से केवल ज़ोरों से रोने की आवाज़ आ रही थी। कुछ देर बाद, फोन की दूसरी ओर से एक पुरुष की गंभीर आवाज़ सुनाई दी। पवन को ये अंदाज़ा लगाने में समय नहीं लगा कि यह उस युवक के अब्बू होंगे। उसने उन्हें अस्पताल जाने के लिए कहा।

दुर्घटना का मामला होने के कारण पवन युवक के जागने तक उसके फोन को उसके घरवालों के हवाले नहीं कर सकता था और न ही उसे पुलिस थाने में छोड़ कर जा सकता था। ऐसे में उसने फोन को अपने साथ रखना ही ज़रूरी समझा। घर पहुंचकर रोज़ की तरह मां का शादी का राग शुरू हो गया। “अरे 30 साल का हो गया है। अब नहीं करेगा, तो कब करेगा शादी? जब मैं मर जाऊंगी तब?” मां ने झल्लाते हुए कहा। “मां, कितनी बार कहा है कि इस तरह की बातें मत किया करो। जब होनी होगी, तब हो जाएगी।”

“ऐसे कैसे हो जाएगी? अरे, उस लड़की का भूत कब तेरे सिर से उतरेगा, जिसे तूने ठीक से देखा तक नहीं है।” मां की बात सुनकर पवन ने एक नज़र उनकी ओर देखा और कुछ कहे बगैर ही अपने कमरे की ओर चला गया। कमरे में जाकर उसने फोन को जेब से निकालकर टेबल पर रखा ही था कि, तभी एक रोशनी चमकी और एक मैसेज नज़र आया, जिसमें लिखा था, “तुम्हारे साथ मेरा साथ शायद यहीं तक था। अलविदा, हुसैन।”

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