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कोरोनो काल में आपदा से लड़ने में आयुर्वेद बना ब्रह्मास्त्र

कोरोनो काल में आपदा से लड़ने में आयुर्वेद बना ब्रह्मास्त्र

नई दिल्ली। वर्ष 2020 हमारे समाज की परंपराओं को पुनर्जीवन देने के तौर पर भी जाना जायेगा, जब कोरोनो संक्रमण के खिलाफ मजबूत इम्युनिटी की मांग को पूरा करते हुए हमारी जीवनशैली में आयुर्वेद की दखल बढ़ी।
मजबूत रक्षक साबित होते हुए आयुर्वेद ने पूरी दुनिया में अपनी वाहवाही बटोरी।

कोरोना काल में आपदा

जब चीन, अमेरिका, इटली,स्पेन, रूस, फ्रांस और इंग्लैंड समेत तमाम विकसित देशों में तबाही मचाने के बाद कोरोनो वायरस की लहर भारत मे दस्तक दे रही थी। जब तक समाज और सरकार इस वायरस की गंभीरता को समझ पाते , दिल्ली, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गुजरात और मध्य प्रदेश में यह वायरस लोगों को अपना ग्रास बनाने लगा।

चिकित्सा विज्ञान के महारथी देश जब इस वायरस के सामने घुटने टेकने लगे तो दुनिया मान रही थी कि जागरूकता और चिकित्सा सुविधाओं के नजरिए से कमजोर भारत में यह वायरस भारी तबाही मचायेगा, तब हमारा आयुर्वेद कोरोनो वायरस के सामने कवच बनकर खड़ा हो गया।

इस दौरान सभी ने पाया कि फिलहाल इम्युनिटी मजबूत करना ही एकमात्र विकल्प है, तब याद आई हमारी परंपरागत चीजें और दादी नानी के नुस्खे।

आयुर्वेद परिवार की संतानें गिलोय, तुलसी, अदरक, काली मिर्च, दाल चीनी, मुलेठी, अश्वगंधा और हल्दी से तैयार होने वाला काढ़ा घर घर में पहुंचा और कोरोनो को चुनौती देने लगा। नई पीढ़ी ने भी आयुर्वेद की परंपरागत शैलियों की महत्ता और उपयोगिता को समझा क्योंकि संकट के इस दौर में जब विकसित देशों की चिकित्सा विज्ञान के अनुसंधानकर्त्ताओं के होश उड़े हुए थे, तब आयुर्वेद रोग प्रतिरोधक क्षमता की ढाल बनकर हमारी सुरक्षा में खड़ा था।

योग और प्राणायाम इसके साथ सोने पर सुहागा जैसा प्रभाव पैदा कर रहे थे। शारिरिक स्वास्थ्य रक्षा में आयुर्वेद तो वहीं मानसिक स्वास्थ्य के लिये योग ने बखूबी साथ दिया। यह हमारी परंपरागत शैलियों का प्रमाण था कि भारत में कोरोनो संक्रमण और इससे होने वाली मौतों की दर विकसित देशों के मुकाबले बहुत कम रही।

कोरोनो काल में आपदा से लड़ने में आयुर्वेद बना ब्रह्मास्त्र

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