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कोरोना के कारण इस क्षेत्र में भारत ने जमाई धाग, चीन गिरा धड़ाम

नई दिल्ली।कोरोना के कारण इस क्षेत्र में भारत ने जमाई धाग, चीन गिरा धड़ाम । कोरोनो महामारी के कारण विश्व स्तर पर चीन के अलग थलग पड़ जाने का लाभ भारत के कपास और कपड़ा उद्योग को मिलने लगा है।

अमेरिका, इटली, जर्मनी, स्पेन ,ऑस्ट्रिया और तुर्की जैसे देशों में भारत में निर्मित तौलिया, चादर और टी शर्ट आदि की भारी मांग हो रही है। मुश्किल में घिरे कपड़ा और कपास उद्योग की स्थिति में दो महीने में ही सुधार आया है।कुछ बंद मिलें भी चालू होने की राह पर है। कई जगह कपास के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी अधिक मिल रहे हैं।

टेक्सटाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के उपाध्यक्ष अशोक वेदा के अनुसार बदले हालात का फायदा उठाते हुए मध्य प्रदेश के औधोगिक क्षेत्र पीथमपुर, मंडीदीप और महाराष्ट्र की बंद सूती कपड़ा मिलें फिर शुरू होने जा रही है। मध्य प्रदेश में वर्धमान समूह, नाहर स्पिनर्स, सागर समूह जैसी कंपनियां कारखाने का विस्तार कर रही है।महाराष्ट्र के शिरपुर में प्रियदर्शिनी सुत मिल सहित कई अन्य कपास और कपड़ा उद्योग फिर शुरू हो गये हैं।

मध्य प्रदेश कॉटन प्रोसेसर्स एंड जिनर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष कैलाश अग्रवाल के अनुसार मध्य प्रदेश समेत अन्य कपास उत्पादक राज्यों गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, तेलेंगाना आदि में जिंनिंग कारखाने में 24 घंटे काम होने लगे हैं।कामगारों फिर रोजगार मिलने लगा है। फिलहाल कपास के भाव और कारोबार में 10 से 12 फीसदी की वृद्धि दिख रही है।

कपास को सफेद सोना भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश के खरगोन, खंडवा, बड़वानी, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, रतलाम ओर धार जिलों में कपास होता है। महाराष्ट्र और गुजरात के भी कई जिलों में इसकी पैदावार की जाती है।

गौरतलब है कि 1980-90 के दौर में भी कपास का स्वर्णिम काल रहा है। उस समय गुजरात के कृषि विज्ञानी सी टी पटेल ने देश में पहली बार हाइब्रिड कपास की किस्म एच 3 एच4 तैयार की थी। मध्य प्रदेश में भी कपास की हाइब्रिड किस्म जेकेएचवाय 1 उगाई गई थी।

इन किस्मों ने कपास उत्पादन में क्रांति ला दी थी। बाद के दौर में स्थिरता आ गई। इसके बाद बीटी कॉटन आया। इससे लंबे रेशे का कपास तो खूब मिला , लेकिन देशी किस्में खत्म होने से छोटे रेशे के कपास की कमी हो गई।

कोरोना के कारण इस क्षेत्र में भारत ने जमाई धाग, चीन गिरा धड़ाम

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