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आपराधिक कानून में बदलाव के लिए गठित समिति को भंग करने की मांग

नई दिल्ली। वकीलों,पूर्व न्यायधीशों ओर पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने विभिन्न समूहों का प्रतिनिधित्व नहीं होने और सार्वजनिक परामर्श के लिए बहुत कम समय दिये जाने जैसे कारणों का हवाला देते हुए आपराधिक कानून में सुधार के लिये गठित समिति को भंग करने की मांग की है।

समूह ने आपराधिक कानूनों में सुधार के लिये गृह मंत्रालय की तरफ से मई में गठित राष्ट्रीय स्तर की समिति को भंग करने के लिये ईमेल अभियान शुरु किया है। इन लोगों का दावा है कि समिति में समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं है।

महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को तेजी से आगे बढ़ाया जा रहा है और सामाजिक परामर्श के लिए भी बहुत कम समय दिया गया है। समिति को लेकर पांच प्रमुख समस्याओं को बताया गया है ,जिसमें विभिन्न वर्गों का प्रतिनिधित्व नहीं होना,इस प्रक्रिया के लिये निश्चित समयावधि, अपारदर्शी तरीके से कार्य करना, जनादेश का सामान्यीकरण करना ओर विधि आयोग को पुनर्लेखन कानून की प्रक्रिया में लाने से इनकार करने
पर सवालिया निशान शामिल है।

पिछले दिनों छह कानूनी संस्थानो के 440 छात्रों ने एक पत्र लिखा था, जिसमें बताया गया था कि समिति में एक भी महिला या हाशिये के समुदायों के सदस्य को शामिल नहीं किया गया है। इन लोगों ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की है कि कोरोनो महामारी इस तरह के सुधार के लिये उपयुक्त समय नहीं है, क्योंकि ऐसे कार्यों के लिए व्यापक स्तर पर पहुंच ओर उनकी बातों को शामिल करने की जरूरत होती है। दूसरी तरफ कई समूहों के प्रतिनिधियों ने समिति से आग्रह किया है कि वह कम से कम महामारी की उचित रोकथाम तक इस कवायद को टाल दे।

गौरतलब है कि गत मई महीने में आपराधिक कानूनों की समीक्षा करने के लिए गृह मंत्रालय की तरफ से एक समिति का गठन किया गया था। रणवीर सिंह की अगुवाई वाली इस समिति में जी एस वाजपेयी, बलराज चौहान, महेश जेठमलानी ओर जी पी थरेजा शामिल हैं।

समिति की तरफ से जिन तीन मुख्य कानूनों की समीक्षा की उम्मीद की जा रही है, वे 1860 की भारतीय दंड संहिता, 1973 की दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 की भारतीय साक्ष्य अधिनियम शामिल है। समिति के पास कानूनों की समीक्षा करने और सिफ़ारिशें देने के लिये छह महीने का समय है।

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