अब लीजिए। सिंधिया के बाद सचिन भी कांग्रेस से आउट
नई दिल्ली। समझ नहीं आता आखिर कांग्रेस अपने तेज तर्रार युवा नेताओं को संभाल क्यों नहीं पा रही है। कांग्रेस के व्यवहार से ही ऐसा लगता है कि यह बीत चुकी पार्टी है। ऐसी पार्टी जिन्हें न तो जनाधार की चिंता है और न ही अपने नए वोटरों की। जिस युवा नेता राहुल गांधी की बात करते कांग्रेस पार्टी थकती नहीं वह भी अपना 50 बसंत देख चुके हैं।
लेकिन जो युवा मौजूद हैं ,पार्टी के लिए खून-पसीना एक कर रहे हैं, वे या तो नाराज़ हैं या फिर विद्रोह का रास्ता अख्तियार कर रहे हैं। हालिया प्रकरण को ही लीजिए। अब सचिन पायलट ने ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पकड़ ली है।
सिंधिया को तो राहुुुल गांधी का खासम-खास माना जाता था। संसद में मोदी से गले मिलने के बाद राहुल ने सिंधिया को ही आंख मारी थी।इसी से उनदोनों के बीच की केमिस्ट्री के पता चलता है। लेकिन उन्होंने नाराज होकर अपने प्रतिद्वंदी भाजपा का ही हाथ थाम लिया। कारण वही की मध्यप्रदेश में कमलनाथ अपनी चलाने लगे, और इनकी तवज्जो कम करने लगे। ठीक वही पैटर्न राजस्थान में भी दोहराया जा रहा है। घाघ नेता अशोक गहलोत हैं कि मानते हीं नहीं। उन्होंने पायलट की महत्वाकांक्षा को कुचलना शुरू कर दिया, लिहाजा पायलट ने बगावत का बिगुल फूंक दिया। नतीजा आपके सामने है। आज कांग्रेस सरकार बचाने के लिए दिन से लेकर रात कर रही है।
जब पायलट नहीं माने तो उन्हें उपमुख्यमंत्री के पद से हटा दिया और फिर पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटा दिया। ये गहलोत की जीत भले ही हो सकती है, लेकिन ये कांग्रेस की बहुत बड़ी हार है।
गौर कीजिए जिस दिन ट्विटर पर राहुल गांधी ने कमलनाथ और गहलोत के हाथ उठाये थे। अगर उसी दिन सिंधिया और पायलट के हाथ उठा दिए होते तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता।
कांग्रेस आज भी पुराने नेताओं के अहसानों तले दबी एक मध्यकालीन पार्टी है, जो राजनीति का नया दौर समझना ही नहीं चाहती। लोग युवा चेहरे को पसंद करते हैं, उनमें अपना भविष्य देखते हैं। ऐसे निर्णयों और युवा नेताओ की उपेक्षा से तो कांग्रेस का बंटाधार होना तय है।